सोमवार, 22 अप्रैल 2024

श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. जो आस्थावान थे, वे तो हमेशा पक्ष में थे लेकिन जो मंदिर नहीं चाहते थे, वे भी विरोधस्वरूप ही सही, आज श्रीराम से जुड़ गए हैं.

अयोध्या में भगवान श्रीराम के नव निर्मित भव्य मंदिर में 22 जनवरी 2024 को प्राणप्रतिष्ठा के बाद जहाँ पूरे भारत का माहौल राममय हो गया है, वहीं राजनीतिक लाभ लेने की होड़ में पक्ष-विपक्ष के बीच बहस और विवादों की एक लंबी श्रृंखला चल निकली है. कुछ लोगों ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण का बहिष्कार किया तो कुछ ने बाद में जाकर दर्शन किए, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आज भी अयोध्या में राम मंदिर न जाने को अपनी पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ जोड़कर अप्रत्यक्ष रूप से वर्ग विशेष के वोटों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं. इसी कड़ी में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि मंदिर से न तो रोजी रोटी मिलेंगी और न ही देश का विकास होगा. भाजपा के लिए राममंदिर हमेशा से एक मुख्य मुद्दा रहा है, और इन चुनावों में उसके द्वारा मंदिर निर्माण का श्रेय लिया जा रहा है, जिसका अवसर विपक्ष ने बैठे बिठाये उपलब्ध करा दिया है. आशा की जानी चाहिए कि चुनावों के समापन के बाद विवादों का समापन भी हो जाएगा.

इस बीच राम जन्मोत्सव का त्योहार भी आ गया और 500 वर्षों बाद ऐसा संभव हो सका कि जब भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव बहुत श्रद्धा और धूमधाम से नव निर्मित मंदिर में मनाया गया. अपने ही गर्भगृह में विराजमान होने के लिए संघर्ष कर रहे रामलला के जन्म का उद्बोधन “भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला कौशल्या हितकारी....” अंतिम बार 22 दिसंबर 1949 की रात सुना गया था, जब एक चमत्कारिक घटना द्वारा रामलला प्रकट हुए थे. उसके बाद मंदिर निर्माण में कितनी बाधाएं खड़ी की गई, कितने राजनैतिक षड्यंत्र रचे गए, कितनी बार न्याय भटका, लटका और अटका, सब कुछ शायद रामभक्तों के धैर्य की अंतिम परीक्षा थी. अब यह सब इतिहास के पन्नों में सिमट चुका हैं. भव्य मंदिर निर्माण का सपना साकार हो गया है और हर विशुद्ध भारतीय के ह्रदय में अपने जीवनकाल में रामलला को अपने मूल स्थान पर भव्य मन्दिर में प्रतिष्ठित होता देखने का इतना आत्मसंतोष है, जिसका वर्णन करना संभव नहीं है.

इस अवसर पर पौराणिकता, धार्मिकता और वैज्ञानिकता के सम्मिश्रण से रामलला का सूर्याभिषेक किया गया जिसने लोगों को भावविभोर कर दिया. सूर्य की किरणों ने एक वैज्ञानिक संयंत्र के माध्यम से रामलला का मस्तक पर तिलक लगाया, जिसका निर्माण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूडकी के बेज्ञानिको में किया था. रामलला के इस मंदिर में अन्य कई उन्नत तकनीक इस्तेमाल की गई है जिसका वर्णन वैदिक ग्रंथों में मिलता है. भारत के अन्य अति प्राचीन मंदिरों में वास्तुकला, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र और ज्यामितीय गणनाओं का प्रयोग आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करता है. मदुरई स्थित मीनाक्षी मंदिर के खंभों को छूने से हर खंभे से अलग अलग तरह की ध्वनि तरंगे निकलती है. वैज्ञानिक परीक्षणों में ये सिद्ध हो चुका है की इन खंभों से अलग अलग वेवलेंथ की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं जिनमे आपस में सामंजस्य हैं, लेकिन इनका प्रयोजन आज भी समझ से परे है. चिदम्बरम स्थित नटराज मंदिर में भगवान नटराज की मूर्ति एक विशेष नृत्य मुद्रा में स्थापित है, जिससे उस समय के पोलस्टार अगस्तय सहित अन्य ग्रहों की स्थिति का आकलन होता है. पूरे भारत में इस तरह के कई मंदिर हैं जिनमें स्थान चयन से लेकर वास्तुकला और आराध्य की मूर्ति की स्थापना तक ऐसे अनगिनत वैज्ञानिक दृष्टिकोण शामिल हैं जिनसे ग्रहों की स्थिति, खगोलीय घटनाएं, पृथ्वी पर होने वाली विषम घटनाओ के प्रतिरोधक उपाय आदि अनेक ऐसे विषय हैं जिनसे हजारों वर्ष पूर्व सनातन धर्म में समाहित वैज्ञानिकता परिलक्षित होती है. दुर्भाग्य से आक्रांताओं ने इनमें से कई वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिरों ओर पुस्तकालयों में उपलब्ध पांडुलिपियों को नष्ट कर दिया. अंग्रेजों ने भी भारतीय संस्कृति से जो नकल कर सकते थे किया और शेष को ढकने या नष्ट करने का कार्य किया. स्वतंत्रता के बाद भी अंग्रेजों के जमाने की स्थिति में कोई भी परिवर्तन आज तक नहीं हो सका है. प्राचीन सनातन संस्कृति के अनेक वैज्ञानिक रहस्य समेटे इन मंदिरों से जुड़ें रहस्यों पर शोध करना तो दूर, वैज्ञानिक, सामाजिक और अर्थव्यवस्था को गति देने वाले इन अति महत्वपूर्ण मंदिरों पर सरकारी कब्जा है और उनके दानपात्र की राशि, अंग्रेजों की तरह ही आज भी सरकार हड़प रही है.

रामराज्य सुशासन के प्रतीक के रूप में पूरे विश्व में स्वीकार्य है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से लेकर महात्मागाँधी तक, रामराज्य की अवधारणा निरंतर हमारी संस्कृति के उच्च आदर्शों का मानक रही है. आज भी सभी को राम राज्य जैसी स्वतंत्रता और अधिकार तो चाहिए, किन्तु दायित्वों के नाम पर तरह तरह के कुतर्क देकर राम को ही लांछित करने लगते हैं. रामराज्य के लिए जिस राजनीतिक व्यक्तित्व विकास एवं पारिस्थितिक परिवेश परिवर्तन की प्रक्रिया अपेक्षित है, उसकी ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। राम ने अव्यवस्था फैलाने वाले राक्षसों है को दंडित किया और जहाँ आवश्यक हुआ उनके राज्य में, उनके गृहनगर में उनका संहार किया. जिसे आज की भाषा में घर में घुसकर मारना कहते हैं. वनों में ऋषि मुनियों को आतंकित करने वाले आक्रांता राक्षसों का विनाश किया. इसके लिए स्थानीय निवासियों, वनवासियों और वानरों को संगठित किया और रावण जैसे शक्तिशाली राजा का सर्वनाश किया. आज के राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ के लिए कुतर्कों के आधार पर राम के चरित्र को परिभाषित करते हैं और समाज द्रोहियों, राष्ट्रद्रोहियों और शत्रु देशों का बचाव करते हैं.

राम मंदिर की न्यायिक कार्यवाही के दौरान राम को काल्पनिक बता कर पूरे मामले को संदिग्ध बनाने की भरपूर कोशिश की गई. आज दुनिया भर में रामायण और महाभारत पर शोध किए जा रहे हैं. ऐसे शोध भारत में कम विदेशों में ज्यादा हो रहे हैं. भारतीय मूल के अमेरिका में बसे एक शोध वैज्ञानिक नीलेश ओक ने 600 से अधिक प्रामाण देकर ये सिद्ध किया है कि राम और रावण का युद्ध 24 दिसम्बर 12,209 बीसीई ( ईसा से12,209 वर्ष पहले) से 7 जनवरी 12208 बीसीई यानी आज से 14,233 वर्ष पहले हुआ था. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कई खगोलीय घटनाएँ, ग्रहों की स्थिति, भौगोलिक परिवर्तन, बाल्मिकी रामायण में वर्णित घटनाओं के आधार पर, समुद्र विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, खगोलशास्त्र, मौसम विज्ञान, पुरातत्व विज्ञान, आदि का सहारा लेकर नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों और साधनों का उपयोग किया गया है. अपने शोध के आधार उन्होंने रामायण से संबंधित कुछ तारीखों की बिल्कुल सटीक गणना की है, जो वाल्मीकि रामायण में वर्णित घटनाक्रम, सामाजिक और भौगोलिक परिवेश, खगोलीय घटनाएं और अन्य पुराणो में संदर्भित तिथियों से पूरी तरह मिलते हैं इसलिए अब तक हुए शोध की सबसे स्वीकार्य तिथियां हैं.

श्री ओक के शोध पत्र के अनुसार भगवान श्री राम का जन्म 29 नवंबर, 12,240 बीसीई में हुआ था. श्री राम के जन्म के समय अयोध्या और उसके आसपास जैसा मौसम था, वातावरण था, कृषि, वन व्यवस्था और सरयू की स्थिति थी, उसका आकलन वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में किया गया है. महर्षि वाल्मीक ने उल्लेख किया है कि श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र, अभिजीत महूर्त में हुआ। इन हजारों वर्षों मे पृथ्वी की भौगोलिक संरचना बदल गई, मौसम बदल गया लेकिन बाल्मिकी रामायण में उल्लिखित राम का जन्म उसी समय तिथि को मनाया जाता है और आज हो रहे शोध में हज़ारों वर्षों से चली आ रही है इस परंपरागत तिथि का बहुत महत्त्व है. इसे सनातन संस्कृति और वैदिक व्यवस्था की उन्नतशीलता ही कहना होगा कि भगवान श्री राम का जन्म चंद्रमास आधारित उसी तिथि पर आज भी मनाया जाता है, जो हमारी संस्कृतिक सभ्यता की प्राचीनता और पौराणिकता को रेखांकित करता है. ये वामपंथियों और नेहरूवियन इतिहासकारों के झूठ की पोल खोल देता हैं कि आर्य बहार से भारत में आये और भारतीय सभ्यता का विकाश सिकंदर द्वारा भारत के आक्रमण के बाद तब हुआ जब भारतीय यूनानियों के संपर्क में आये. इसके विपरीत आर्य भारत से सेन्ट्रल एशिया और यूरोप गए जहाँ कि भाषाओँ में संस्कृत से निकटता प्रमाणित होती है.

श्री नीलेश ओक ने रामायण की महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की तिथियों की गणना और आकलन किया है. उनके अनुसार विश्वामित्र 4 दिसंबर 12,224 बीसीई को अयोध्या पधारे. 7 दिसंबर 12,224 बीसीई को ताड़का वध हुआ. 9 से 14 दिसंबर 12,224 बीसीई के बीच विश्वामित्र द्वारा किए गए महायज्ञ को संरक्षित किया. 15 दिसंबर 12,224 बीसीई को मिथिला के लिए प्रस्थान किया. 19 दिसंबर 12,224 बीसीई को राम ने शिव धनुष उठाया. राम और सीता का विवाह 4/5 जनवरी 12,223 बीसीई को संपन्न हुआ. राम का वनगमन 20/21 दिसंबर 12,223 बीसीई को हुआ. 25/26 दिसंबर 12,223 बीसीई को राजा दशरथ की मृत्यु हो गई. 10 अप्रैल 12,222 बीसीई को चित्रकूट में भारत मिलाप हुआ. नल सेतु या रामसेतु का निर्माण 8 से 18 दिसंबर 12,209 बीसीई के मध्य पूरा हुआ. 7 जनवरी 12,208 बीसीई को राम रावण युद्ध समाप्त हुआ और राम पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे. राम भरत मिलन और राम का राज्याभिषेक 13 जनवरी12,208 बीसीई को हुआ. सोचिये अगर रामेश्वरम से अयोध्या की लगभग 4000 किमी (हवाई दूरी लगभग 3000 किमी) की यात्रा आज की जाय तो फ़ास्ट ट्रेन से कम से कम ४ दिन, और सड़क मार्ग से एक सप्ताह लगेगा लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद एक दो दिन बाद श्रीराम लक्षमण वापस चले होंगे और राज्याभिषेक से एक दो पहले सभी लोग पहुंच गए होंगे. इससे उस समय विमान की उपलब्धता और वैकल्पिक ऊर्जा से चलने की संभावना उत्साहजनक रूप से बढ़ गयी है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इस सम्बन्ध में शोध किया जा रहा है.

12,196 बीसीई में लवकुश द्वारा राम के समक्ष रामायण गान किया, जिससे इस समय तक रामायण की सम्पूर्णता भी प्रमाणित होती है, और रामायण की प्राचीनता और वास्विकता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों को उचित उत्तर मिल गया है.

राम मंदिर निर्माण के बाद यद्यपि पूरे देश में खुशी का माहौल है लोगों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है और सभी खासे उत्साहित है. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है लेकिन देश में राक्षसी प्रवत्तियां कम हो रही हो, ऐसा नहीं हैं. इनका आक्रोश और आतंक बढ़ता जा रहा है. केवल सोशल मीडिया पर ही नहीं, हर गली के किसी न किसी मोड़ पर कोई न कोई राक्षस किसी न किसी रूप में मिल सकता है, जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है. जरूरत इस बात की है कि राम राज्य की पारिकल्पना करने वाली सरकार भी इन राक्षसों के विनाश की वही नीति लागू करे जो श्री राम ने की थी, अन्यथा न तो राष्ट्र का सामर्थ्य बढेगा और न ही राम राज्य का सपना कभी पूरा हो सकेगा.

~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~

क्या कांग्रेस का घोषणा पत्र मुस्लिम लीग का है

 







कांग्रेस का घोषणापत्र खतरे की घंटी है, यह घोषणा पत्र से आसानी से समझा जा सकता है.

कांग्रेस के घोषणापत्र से पूरे देश में हो हल्ला मचा है लेकिन कांग्रेस इससे बेफिक्र चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं. उन्हें लगता है कि 2004 की तरह कांग्रेस सहयोगियों की मदद से सत्ता पर कब्जा जमाने में सफल हो जाएगी. वैसे तो घोषणा पत्र में 5 न्याय 25 गारंटी और 300 से ज्यादा वायदे शामिल करके 48 पेज की एक पुस्तिका निकाली है लेकिन हम यहाँ केवल उन बिंदुओं पर बात करेंगे जो राष्ट्र, सनातन संस्कृति और हिंदुओं के पूरी तरह से विरुद्ध हैं.

भाजपा ने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का घोषणापत्र बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसके घोषणापत्र में शामिल कई मुददे, मुस्लिम लीग द्वारा 1936 में जारी किए गए घोषणापत्र से मिलते हैं. 1936 में मुस्लिम लीग के चुनाव घोषणापत्र ने कहा गया था कि वे मुसलमानों के लिए सीरिया कानून की मांग करेंगे. कांग्रेस ने अपनी घोषणा पत्र में मुसलमानों के पर्सनल कानून को सुरक्षित रखने का वायदा किया है. मुस्लिम लीग ने कहा था कि वह भारत में बहुसंख्यक वाद के विरुद्ध किसी भी स्थिति तक जाकर संघर्ष करेगी. कांग्रेस में कहा है कि भारत में बहुसंख्यकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है और वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कृतसंकल्पित है. मुस्लिम लीग ने कहा था कि वह मुसलमानों को विशेष छात्रवृत्तियां और विशेष रोजगार देने के लिए संघर्ष करेंगी. कांग्रेस ने वायदा किया है कि वह सुनिश्चित करेंगी कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ, सरकारी नौकरी, लोक निर्माण अनुबंध, कौशल विकास, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में बिना किसी भेदभाव के उचित अवसर प्राप्त हो. कांग्रेस ने प्रत्यक्ष तौर पर घोषित कर दिया है कि वह संविधान के अनुच्छेद 15 16 25 28, 29 और 30 में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले मौलिक अधिकारों का आदर करेगी और उन्हें बरकरार रखेगी. वह भाषाई आधार पर मुसलमानों को दी जा रही उन सुविधाओं का आदर करेगी और उन्हें अनवरत जारी रखेगी. यानी मदरसा शिक्षा, उर्दू, फारसी, अरबी की पढ़ाई तथा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में उर्दू फ़ारसी अरबी और इस्लामिक अध्ययन जैसे विषयों को शामिल रखा जाएगा. सभी परिचित है कि इसके क्या दुष्प्रभाव हो रहे हैं, मुस्लिम परीक्षार्थी और मुस्लिम परीक्षक हो तो सिविल सेवा में सफलता कितनी आसान है इसका अंदाजा बहुतों को नहीं है. मुस्लिम छात्रों को विदेश में अध्ययन के लिए मौलाना आजाद छात्रवृत्ति को लागू करेंगे और छात्रवृत्ति की संख्या बढ़ाई जाएगी. मुसलमानों को ऋण प्राप्त करने में कोई कठिनाई ना हो इसके लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएगी.

कांग्रेस ने वायदा किया है की भोजन, पहनावे, प्यार और शादी में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. समझा जा सकता है कि इस वाक्य में हर शब्द तुष्टिकरण के लिए जोड़ा गया है. भोजन का सीधा मतलब है गोहत्या को कानूनी जामा पहनाना और उन राज्यों में जहाँ गो रक्षक दल द्वारा समुदाय विशेष के गो तस्करों को कानून के दायरे में लाकर कार्रवाई सुनिश्चित की जाती है, उस पर रोक लगाना. इसका एक और मतलब है कि बड़ी संख्या में बूचड़खाने फिर खुल जाएंगे. होटल और रेस्टोरेंट में सामन्य रूप से गोमांस परोसा जा सकेगा. पहनावे की स्वतंत्रता का मतलब है बुर्का, हिजाब, नकाब आदि को प्रतिबंध मुक्त करना. जहाँ समुदाय विशेष की महिलाओं का जीवन मुश्किल होगा वही आतंकवादी भी बुर्के की आड़ में बड़े आसानी से कहीं भी कभी भी विस्फोट कर सकेंगे. फिर उसी युग की शुरुआत हो सकती है जब लावारिस वस्तुओं को न छूने के लिए चेतावनी प्रसारित की जाती थी. घोषणा पत्र में प्यार की स्वतंत्रता का वायदा किया गया है यानी लव जेहाद के विरुद्ध कुछ बोलने या पुलिस द्वारा कानूनी कार्रवाई करने का युग समाप्त हो जाएगा और धड़ल्ले से बड़ी संख्या में हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण कराया जा सकेगा. धर्मांतरण के मुददे पर पूरा देश उद्वेलित है. फ्रिज, अटैची, बैग और बोरों में टुकड़ों टुकड़ों में मिल रही लाशों के बावजूद, कांग्रेस जागरूकता और रोकथाम उपाय करने का अधिकार भी हिंदुओं को नहीं देना चाहती.

घोषणापत्र में शादी में हस्तक्षेप न करने का वायदा ये संकेत देता है कि हाल ही में असम सरकार द्वारा बाल विवाह पर रोक लगाने के फैसले से नाराज हुए कट्टरपंथियों को खुश करना हैं. असम सरकार ने कम उम्र की मुस्लिम बच्चियों के विवाह पर रोक लगाते हुए उन्हें बेहतर जीवन यापन के लिए समाज की मुख्यधारा में शामिल किया है. मुस्लिम तुष्टीकरण की कांग्रेस की परंपरागत सोच को आगे बढ़ाते हुए अनेक जगह उन्हें सुविधाएं सहूलियतें देने का वायदा किया गया है और इस तरह देखा जा सकता है कि पूरे घोषणापत्र में सबसे अधिक महत्त्व अल्पसंख्यकों को ही दिया गया है.

इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कुछ अजीबोगरीब कार्य करने की प्रस्तावना की है. इनमें एक है भारतीय महिला बैंक की पुनर्स्थापना, जिसका लगातार घाटा उठाने और कोई सार्थक परिणाम न देने के कारण वर्ष 2016 में भारतीय स्टेट बैंक के साथ विलय कर दिया गया था. कांग्रेस ने यह भी वायदा किया है की पुलिस, जांच और खुफिया एजेंसियां की सख्ती और बेलगाम शक्तियों को कम किया जाएगा. कानून को ढाल बनाकर मनमानी तलाशी, जब्ती, कुर्की और अंधाधुंध गिरफ़्तारियां तथा बुलडोजर न्याय समाप्त किया जाएगा. इसका अर्थ हुआ कि प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, एनआईए तथा अन्य खुफिया एजेंसियों द्वारा की जा रही कार्रवाई दुष्प्रभावित होगी. बुलडोजर न्याय के लिए लांछित किए जाने वाले उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध कब्जे और माफिया संस्कृति पर इससे बहुत अंकुश लगा है लेकिन कांग्रेस परेशान है. कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित आरक्षण की 50% सीमा को समाप्त करने का भी वायदा किया है. यक्ष प्रश्न यह है कि यह सुविधा किस समुदाय के लिए प्रस्तावित की जा रही है. यदि ध्यान से सोचेंगे तो एक ही उत्तर मिलेगा, मुस्लिम समुदाय. यह भी प्रस्तावित किया गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को मिल रहा 10% का आरक्षण का बिना किसी भेदभाव के सभी जातियां सभी समुदाय उपयोग कर सकेंगे. सोचिये प्रभावित कौन होगा. कथित रूप से उच्च जातियां ही प्रभावित होंगी, जिनके विरोध में जेएनयू, जामिया और एएमयू में नारे लगाए जाते हैं और कांग्रेस समर्थन करती है. घोषणा पत्र में कहा गया है कि कांग्रेस मानहानि के जुर्म को अपराध मुक्त कर देगी. यह बिंदु खासतौर से राहुल को ध्यान में रखकर बनाया गया है कि अगर भविष्य में भी वे किसी के विरुद्ध कुछ भी कहते रहे हैं और कानून के शिकंजे में न फंसे. कांग्रेस ने एक देश चुनाव को पूरी तरह खारिज कर दिया है जिसका अर्थ है कि वह राष्ट्रीय फिजूलखर्ची के लिए संवेदनशील नहीं है और दूसरा हो सकता है कि जिस धारा 356 जिसका उपयोग कांग्रेस आपने हित में संविधान लागू होने के बाद से ही करती आई है वह धड़ल्ले से होता रहेगा.

शायद सभी को स्मरण भी न हो कि 1991 में कांग्रेस की नरसिम्हा राव (जिन्हें इस वर्ष भारत रत्न से सम्मानित किया गया है) की सरकार ने अल्पमत में होते हुए भी सनातन धर्म, संस्कृति और मुस्लिम तुष्टिकरण पराकाष्ठा पार करते हुए हिन्दुओं के विरुद्ध तीन बड़े कानून बनाये थे. पूजा स्थल कानून द्वारा 15 अगस्त 1947 को धर्म स्थलों की जो स्थिति थी उसकी यथास्थिति बनाए रखने का कानून था, इस कानून द्वारा दसवीं शताब्दी से लेकर 15 अगस्त 1947 तक हिंदू धर्मस्थलों में आक्रान्ताओं द्वारा की गयी तोड़फोड़ को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई थी. बहुसंख्यकों की बेबसी देखिए कि वे अदालत भी नहीं जा सकते हैं, लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठायी. नरसिम्हा राव सरकार का दूसरा कुख्यात कानून वक्फ बोर्ड का था जिसके द्वारा वक्फ बोर्ड को ये अधिकार है कि वे बिना किसी साक्ष्य के बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकते हैं. जिलाधिकारी बिना किसी प्रतिवाद के उस संपत्ति का कब्जा प्राप्त कर वक्फ बोर्ड को उपलब्ध कराएंगे. भारतीय संसद, हैदराबाद का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सहित देश की न जाने कितनी संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा है. तीसरा कानून अल्पसंख्यक आयोग का संवैधानिक दर्जा प्रदान करना था, जिसने अंधाधुंध आर्थिक, कानूनी और राजनैतिक सहायता देकर मुस्लिम हितों का संरक्षण किया.

कांग्रेस शासनकाल में सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 कानून बनते बनते रह गया. अगर ये कानून पास हो जाता तो हिंदुओं की स्थिति औरंगजेब के शासनकाल से भी बदतर हो जाती. इस विधेयक में सांप्रदायिक हिंसा होने पर केवल बहुसंख्यक हिंदुओं को जिम्मेदार मानने का प्रावधान था. इसमें सजा और जुर्माना दोनों ही प्रस्तावित थे. अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यक महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाने पर भी उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता था. हिंदू मुसलमानों के लिए अलग अलग अदालतों का प्रावधान था और पूरा ढाँचा अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए बनाया गया था. सौभाग्य से उस समय यह विधेयक पास नहीं हो सका लेकिन कांग्रेस के शस्त्रागार में ये आज भी ये उपलब्ध है. यदि अगर अगली सरकार कांग्रेस की आती है तो ये विधेयक भी पास भी हो सकता है.

अधिकांश लोगों ने कांग्रेस की इस घोषणा पत्र का अवलोकन नहीं किया होगा. कांग्रेस इतनी बेशर्मी से मुस्लिम एजेंडा लागू करने जा रही और यह सारी चीजे मिलकर गज़वा ए हिंद योजना को मजबूत करेगी. पीएफआई के अनुसार भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का कार्य 2047 तक पूरा किया जाना है लेकिन कांग्रेस इससे बहुत पहले ही पूरा करने को आतुर है. इसलिए मतदान करते समय अपना नहीं, राष्ट्र का ध्यान रखें. राष्ट्र बचेगा तभी हम सब बच पाएंगे.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शनिवार, 6 अप्रैल 2024

सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर लगाई रोक


हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ निर्णय चर्चा में रहे जिनमें न्यायिक सर्वोच्चता के साथ साथ न्यायिक अतिसक्रियता भी परलक्षित हुई, जिससे लोगों ने तरह तरह के कयास लगाने शुरू कर दिए.

कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर रोक लगा दी. रोक लगाते हुए उसने जो टिप्पणी की वह गंभीरतो है ही, कयासों को हवा देने वाली भी हैं, कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है, सही नहीं हो सकता. बड़ी हैरानी की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय तुरंत इस निष्कर्ष पर पहुँच गया कि उच्च न्यायालय का निर्णय सही नही है. अब वह पूरे मामले की फिर से सुनवाई करेगा, तब तक वर्तमान व्यवस्था चलती रहेगी. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कब आएगा इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है और यह मुकदमा भी 80 हजार लंबित मुकदमे में शामिल हो जाएगा और अनंतकाल तक पडा रह सकता है. ज्ञातव्य है कि 22 मार्च 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के समानांतर मदरसा शिक्षा बोर्ड का कानून बनाना धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध है. चूँकि उ.प्र.मदरसा शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश में संचालित मदरसों की इस्लामिक शिक्षा व्यवस्था का उत्तरदायित्व संभालता है, जिसमे केवल मुस्लिम छात्र पढ़ते है, इस तरह की सरकारी व्यवस्था एक देश दो विधान वाली है.

ज्ञानवापी के मामले में पूरे देश ने देखा कि कैसे भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण को अनावश्यक विलंब का सामना करना पड़ा. सर्वोच्च न्यायालय ने मामला सेशन अदालत से लेकर जिला न्यायाधीश की अदालत को स्थानांतरित किया. दो कदम आगे और चार कदम पीछे चलने की प्रक्रिया से मामला कई बार उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के गलियारों से गुजरा और कीमती समय बर्बाद हुआ. नई पीढ़ी के लोग इससे आसानी से समझ सकते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का 1950 में शुरू हुआ मुकदमा 2019 तक (लगभग 70 वर्ष) तक क्यों लटका रहा.

नेशनल जुडिशल डेटा ग्रिड पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में इस समय लगभग 80 हजार मुकदमे लंबित हैं, इसमें 50 हजार से अधिक मुकदमे एक साल से अधिक समय से लंबित है. कुछ मुकदमे 40 वर्ष से भी अधिक समय से लंबित है. लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि जितने मामलों का निपटारा होता है उससे अधिक नए मामले आ जाते हैं. अगर लंबित मामलों का विश्लेषण करें तो यह बिलकुल स्पष्ट है कि 2013 के बाद साल दर साल मुकदमो की संख्या बढ़ती जा रही है. पिछले वर्ष 2023 के 10481 मुकदमे लंबित हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. सभी उच्च न्यायालयों मे मिलाकर 62 लाख मुकदमे लंबित हैं, जिनमे लगभग 80% एक वर्ष से अधिक समय से लंबित है, बड़ी संख्या में मामले कई दशकों से लंबित हैं. वर्तमान समय में सभी न्यायालयों में मिलाकर 4.4 करोड़ मुकदमे लंबित है, इनमें राजस्व, चकबंदी, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर, विभिन्न त्रय्बुनल के मुकदमे शामिल नहीं है.

सर्वोच्च न्यायालय में 80 हजार से भी अधिक मुकदमे लंबित होने के वास्तविक कारण हो सकते हैं लेकिन असाधारण रूप से जनता को अंग्रेजों के जमाने के ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश खटकते हैं जिस पर सोशल मीडिया में जमकर विरोध किया जाता है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और ये व्यवस्था पूरे शान-ओ-शौकत के साथ चलती जा रही है. मुकदमों के शीघ्र निपटान के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई वैकल्पिक व्यवस्था या प्राथमिक स्तर पर सरलीकृत व्यवस्था का सुझाव दिया गया हो ऐसा भी नहीं है. तो फिर इन लंबित मुकदमो की जिम्मेदारी किसकी है, इसका भी समुचित उत्तर नहीं मिलता. ऐसा लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय इस विषय में गंभीर नहीं है. न्याय की आश में पीढ़ियां गुजर जाती हैं लेकिन मुकदमें ज्यों के त्यों चलते रहते हैं. कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ ऐसे मुकदमे भी लंबित हो जिनसे दोनों पक्ष के पैरवीकार मर खप गए हो और मुकदमे तारीख का इंतजार कर रहे हो.

लंबित मुकदमों के बढ़ते जाने का एक सबसे बड़ा कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के निर्णयों पर रोक लगाना हो सकता है. आखिर सभी न्यायाधीश कोलिजियम की कथित बेहतरीन व्यवस्था से निकले हैं तो इतना विरोधाभास या अविश्वास क्यों. जनहित याचिकाओं को बढ़ावा देना भी प्रमुख कारण है. प्रभावशाली, धनाढ्य और राजनीतिक व्यक्तियों तथा मुस्लिम संगठनों को सर्वोच्च वरीयता प्रदान करना भी, बड़ा कारण है. जनहित याचिकाएं हमेशा से विवादों के घेरे में रहती आई है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ जनहित याचिकाएं बहुत ही महत्वपूर्ण और जनहित में दायर की गई होती है लेकिन कुछ याचिकाएं ऐसी होती हैं जो प्रथम दृष्टया स्वार्थ पूर्ण लगती हैं. हाल में एक ऐसी जनहित याचिका दायर की गई जिनमें कोलेजियम द्वारा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को भेजी गई सूची को निश्चित समय सीमा में स्वीकृत प्रदान करने से संबंधित थी. समझा जा सकता है कि जनहित याचिकाकर्ता का सर्वोच्च न्यायालय से, या कोलिजियम सूची में नामित सदस्यों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कितना गहरा संबंध है.

हाल में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक निर्णय में चुनाव आयुक्तों सहित कुछ अन्य नियुक्तियों के लिए बनी कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को एक सदस्य घोषित किया था. कितनी हास्यास्पद बात है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने खुद किसी कमेटी का सामना नहीं किया, कोई साक्षात्कार नहीं दिया, वह इन कमेटियों का सदस्य बनना चाह रहा है ताकि नियुक्तियां पारदर्शी हो सके.

सर्वोच्च न्यायालय की अतिसक्रियता या संसद के अधिकारों के अतिक्रमण करने का एक संगीन मामला तब सामने आया जब उसने संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को निरस्त कर दिया. कारण बताया गया कि यह संविधान विरोधी है. हाल में इलेक्टोरल बांड का 2019 में बना कानून भी असंवैधानिक बता कर निरस्त कर दिया है. इन सभी पर राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर कर चुके थे. अगर सर्वोच्च न्यायालय संसद से भी सर्वोच्च है तो क्यों न उसे लोकसभा, राज्यसभा के साथ तीसरे सदन की मान्यता दे दी जाय और जब तक सर्वोच्च न्यायालय अनुमति न दे कोई नया कानून न बनाया जाय. ऐसा विश्व में किसी देश में नहीं होता है. सर्वोच्च न्यायालय पर जो आरोप लगते हैं उसका कारन इस तरह के पक्षपाती दिखने वाले फैसले ही होते हैं.

1991 में पारित पूजा स्थल कानून में यह व्यवस्था है कि देश के धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप 15 अगस्त 1947 को था उसे यथारुप बनाए रखा जाएगा. क्या कोई ऐसा कानून बनाया जा सकता है जो 43 वर्ष पीछे से लागू किया जाए. इस कालखंड में अगर हिंदुओं ने अपने उन धर्म स्थलों का पुनः प्राप्त कर जीर्णोद्धार कर लिया होता, जिन पर मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़फोड़ कर मस्जिदे बना दी थी, तो कितने विषम स्थिति उत्पन्न हो गई होती. वक्फ बोर्ड का कानून भी किसी भी दृष्टिकोण से न तो संवैधानिक है और न ही धर्मनिरपेक्षता के अनुरूप लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इन सब पर खामोश रहा, खामोश हैं और खामोश रहेगा. मंदिरों पर सरकारी नियन्त्रण और उनके चढ़ावे को हड़पने का जो कानून जवाहर लाल नेहरू ने बनाया था उस पर भी सर्वोच्च न्यायालय को कभी कोई आपत्ति नहीं हुई. संविधान की प्रस्तावना में इंदिरा गाँधी द्वारा “सोसलिस्ट सेक्युलर” जोड़ने पर भी उसे कोई समस्या नहीं. ऐसा क्यों.

कई ऐसे मौकों पर जब न्यायपालिका को सक्रिय होकर अपनी राष्ट्रीय भूमिका अदा करना चाहिए था, सर्वोच्च न्यायालय निष्क्रिय रहा. लंबे समय तक शाहीन बाग में चले सीएए विरोधी आंदोलन के कारण दिल्लीवासियों को हुई भयानक असुविधाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने कोई निर्देश देने की बजाय अपने वार्ताकार भेज दिये. न्यायपालिका के इस अभिनव प्रयोग की प्रशंसा नहीं की जा सकती. किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली घेरकर बैठे कुछ आंदोलनकारियों और असामाजिक तत्वों के धरने प्रदर्शन पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने जो रवैया अपनाया उससे भी न्यायपालिका की गरिमा की गंभीर क्षति हुई.

धारा 370 हटाने के विरोध में दायर की गई लगभग 40 याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने 16 दिन तक लगातार सुनवाई की. यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने धारा 370 हटाने पर मुहर लगा दी लेकिन संसद द्वारा पारित कानूनों की इतनी सूक्ष्म विवेचना और उस पर लगाए जाने वाले समय को कम किया जा सकता था.

मेरा अपना मत है कि पांच सात न्यायाधीशों की पीठ संसद, जो भारत के 140 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, द्वारा बनाये गए किसी कानून को निरस्त करने की हकदार नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय न्यायपालिका में तो सर्वोच्च है लेकिन देश में सर्वोच्च है, इस गलतफहमी से जितनी जल्दी हो सके बाहर आ जाने में ही उसकी और देश की भलाई है.

~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शनिवार, 30 मार्च 2024

वैश्विक घेराबंदी की कोशिश

 




अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत के संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने एक बयान में कहाकि विवादास्पद नागरिकता कानून पड़ोसी देशों से भागकर भारत में शरण चाहने वालों के लिए धार्मिक भेदभाव पर आधारित है. उन्होंने कहा कि जहां सीएए हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों के लिए नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान करता है, वहीं कानून स्पष्ट रूप से मुसलमानों को बाहर करता है। अगर कानून का उद्देश्य वास्तव में सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है, तो इसमें बर्मा के रोहिंग्या मुस्लिम, पाकिस्तान के अहमदिया मुस्लिम, या अफगानिस्तान के हजारा शिया, अन्य भी शामिल किये जाने चाहिए। किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. आयोग ने अमेरिकी सरकार से आग्रह किया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की वकालत करने वाले मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए भारत पर दबाव बनाएं. अमेरिकी सीनेटर बेन कार्डिन ने तो यहाँ तक कहा वे भारत सरकार के इस विवादास्पद कानून और उसके भारतीय मुसलमानों पर पड़ने वाले प्रभाव से बेहद चिंतित हैं. मामले को बदतर बनाने वाली बात यह है कि इसे रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान लाया गया है।

यद्यपि भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है और किसी देश या विदेशी संस्था को इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है लेकिन इससे एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इन सबकी भाषा बिल्कुल वही है जो भारत के कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं की है. यह समझना मुश्किल नहीं है कि भारत विरोधी षड्यंत्रकारियों के हाथ कितने लंबे हैं और उनका भारत विरोध कितना गहरा है. एक ओर जहाँ वह भारत के राष्ट्रांतरण के षड्यंत्र की सफलता के लिए प्राचीन सनातन धर्म और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर बदनाम कर रहे हैं, वही भारत और अमेरिका के आपसी रिश्तों में खटास पैदा करके तकनीक हस्तांतरण तथा मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के समक्ष अवरोध खड़े कर रहे हैं. इसके साथ ही सरकार और मोदी विरोधी आंदोलनों के लिए समर्थन जुटाकर भारतीय अर्थव्यवस्था की गति को रोक रहे हैं.

भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का यह अकेला मामला नहीं है. हाल ही में शराब घोटाले में पिछले छह महीने से लगातार 9 सम्मन देने के बाद भी हाजिर न होने वाले वांछित आरोपी अरविन्द केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार करने पर भी कई देशों ने अनावश्यक टिप्पणियां की और सुनियोजित रूप से मामले को विदेशी मीडिया में प्रचारित और प्रसारित किया गया. पहले जर्मनी और बाद में अमेरिका ने इस मामले में अनुचित प्रतिक्रिया दी.  जर्मनी ने कहा कि उन्होंने मामले का संज्ञान लिया है और उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से संबंधित मानकों को इस मामले में भी लागू किया जाएगा. उन्हें निष्पक्ष सुनवाई उपलब्ध होगी और बिना किसी प्रतिबंध के सभी उपलब्ध कानूनी रास्तों का उपयोग करने की छूट उपलब्ध होगी. भारतीय विदेश विभाग ने जर्मन दूतावास प्रमुख को बुलाकर कड़ी आपत्ति ज़ाहिर की और उसके बाद जर्मनी की भाषा में नरमी आ गई लेकिन  इसके बाद भी अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि वे स्थिति का बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और  चाहते हैं कि केजरीवाल के लिए निष्पक्ष पारदर्शी और समय पूर्ण कानूनी प्रक्रिया उपलब्ध हो. हद तो तब हो गयी जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की ओर से एक बयान जारी किया गया कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के मद्देनजर उन्हें बहुत उम्मीद है कि भारत में, जैसा कि चुनाव वाले किसी भी देश में होता है, राजनीतिक और नागरिक अधिकारों सहित सभी के अधिकारों की रक्षा की जाएगी, और हर कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष माहौल में मतदान करने में सक्षम होगा। कांग्रेस के खातों को फ्रीज करने संबंधित समाचार पर भी अमेरिका सहित कुछ अन्य देशों ने प्रतिक्रियाये दी. हमेशा की तरह भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट, अल जज़ीरा, सीएनएन आदि ने लेख छापे और विशेष वार्ताएं प्रसारित और प्रकाशित की.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इन प्रतिक्रियाओं पर सत्तारूढ़ भाजपा के अलावा किसी अन्य राजनीतिक दल ने विरोध व्यक्त नहीं किया बल्कि आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस ने विदेशी प्रतिक्रियाओं का समर्थन किया है. राहुल गाँधी तो पहले ही देश विदेश में अपनी प्रेस वार्ताओं में यह कह चुके हैं कि भारत में लोकतंत्र नहीं है. शायद उन्हें लगता है कि यदि भारत में लोकतंत्र होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस सत्ता में होती है और  भारत में तब तक लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता जब तक कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो जाती.

इन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं और मीडिया कवरेज से स्पष्ट है कि भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय शक्तियां पूरी तरह सक्रिय है और ये किसी भी हालत में भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और सामर्थ्य को रोकना चाहती है. जहाँ कुछ देश आज भी भारत को विकसित और सशक्त राष्ट्र की श्रेणी से बहुत दूर एक बड़े बाजार के रूप में बनाए रखना चाहते हैं, वहीं कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बना कर हजारों वर्ष पहले देखे गए गज़वा ए हिंद के सपने को साकार करना चाहते हैं. संशोधित नागरिकता कानून में मुसलमानों को शामिल करना इस मुहिम में उत्प्रेरक का काम करेगा क्योंकि भारत में अवैध रूप से घुसे पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत के नागरिक हो जाएंगे.

भारत लंबे समय से वैश्विक षडयंत्रकारियों के निशाने पर है और स्थिति में कुछ भी  परिवर्तन नहीं हुआ है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बहुत पहले से ही कई देशों की बुरी नजर भारत पर रही है. पहली शताब्दी से लेकर 17वी शताब्दी तक विश्व अर्थ व्यवस्था में एक तिहाई हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है. इसी कारण भारत सोने की चिड़िया था और इसलिए कुछ देशों की बुरी नजर होना बहुत स्वाभाविक था. भारत पर दो तरह के आक्रमण हुए, धार्मिक और आर्थिक. आक्रमणकारियों ने भारत की अतुल्य अकल्पनीय धन सम्पदा को जितना लूट सकते थे लूटा और ले गए. दार्शनिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से उन्नत सनातन धर्म के सामने अत्यंत दुर्बल, दीन हीन, कबीलाई संस्कृति के अनपढ़ और पैशाचिक प्रवृत्ति वाले इन आक्रमणकारियों ने सनातन धर्म और संस्कृति को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया. ऐसा साल दो साल नहीं, 700 वर्षों के लंबे कालखंड तक होता रहा लेकिन यह सब भी भारतीयों में राष्ट्र की रक्षा के लिए जिस राष्ट्रभक्ति और समर्पण की भावना की आवश्यकता थी, वह पूर्ण रूप से जागृत नहीं कर सका. यह सही है कि अनेक राष्ट्र भक्तों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अथक संघर्ष किया और आत्म बलिदान दिया, लेकिन देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जो पूरे घटनाक्रम के मूकदर्शक बने रहे. इसका परिणाम अंग्रेजों की गुलामी के रूप में सामने आया.

इसके बाद संगठित रूप से राष्ट्रीय लूट शुरू हो गई और सनातन धर्म और संस्कृति को पथ भ्रष्ट या नष्ट करने का कुचक्र शुरू हो गया. कालान्तर में देश स्वतंत्रता तो जरूर हुआ लेकिन वैश्विक षडयंत्र ने भारत के दो टुकड़े कर दिए. एक खंड धार्मिक आधार पर पाकिस्तान बन गया लेकिन दूसरा खंड विभाजन का नासूर लिए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना दिया गया. इसके लिए गाँधी, नेहरू और कांग्रेस इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार थे. कोई कुछ भी कहे इस षड्यंत्रकारी विभाजन को देखकर ऐसा लगता है कि या तो ये समझदार और सक्षम नहीं थे, या षड्यंत्र का शिकार हो गए थे या स्वयं षड्यंत्र में शामिल थे.

दुर्भाग्य से राष्ट्र की एकता और अखंडता तथा सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए जिस तरह एक बड़ा वर्ग पहले मूकदर्शक था, वही स्थिति आज भी है. अंतरराष्ट्रीय वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ के षड्यंत्रकारी संगठन तथा ऐसे दूसरे देश और संस्थान जो भारत से अनुचित लाभ प्राप्त करने में असफल है, मिलकर भारत के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. ये सभी भारत को कमजोर करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं. उनकी हमेशा कोशिश रहती है कि सनातन धर्म और सनातन संस्कृति की विकृत छवि प्रस्तुत करें और यह सिद्ध कर सकें कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है ताकि भारत में चलाये जा रहे धर्मांतरण के षड्यंत्र से लोगों का ध्यान हटा सकें और राष्ट्रांतरण के लिए गज़वा ए हिंद जैसी योजना को निरंतर ऊर्जा भी प्रदान करते रहे. वे सफल भी हो रहे क्योंकि अधिकांश भारतीय विशेषतय: सनातनी लोग अब मूक दर्शक नहीं सुप्तावस्था में हैं. इसलिए ये देश कब तक सुरक्षित रह सकेगा कहना मुश्किल है.

चुनाव का मौसम है, विभिन्न राजनैतिक दलों के वक्तव्यों और प्रतिबद्धताओं से स्पष्ट है कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति की रक्षा करने वाले दल कौन हैं, उन्हें ही वोट दें. यही समय है, सही समय है जब सभी देशवासी महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ऊपर उठकर देश बचाने का प्रयास करें. महंगाई और बेरोजगारी केवल भारत की नहीं, वैश्विक समस्या है, जब देश ही नहीं बचेगा, हमारी संस्कृति ही नहीं बचेगी, तो सभी समस्याएं खत्म भी हो जाये तो क्या लाभ.

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 

 

 

 

 

 

शनिवार, 23 मार्च 2024

केजरीवाल - भ्रष्टाचार की रजनीति या राजनीति का भ्रष्टाचार

 


राजनीति का भ्रष्टाचार

आखिरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हो ही गए. ये गिरफ्तारी ईडी द्वारा 9 सम्मन देने के बाद भी कैजरीवाल के उपस्थित न होने के कारण उनके निवास पर छापेमारी  की गयी. पूंछ तांछ में प्रश्नों का जबाब न देने और जांच में सहयोग न करने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया. न्यायालय ने केजरीवाल को 6 दिन की रिमांड पर प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दिया है. इसके पहले केजरीवाल ने ईडी के सभी सम्मनों को यह कहकर खारिज कर दिया था कि ये गैर कानूनी है. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गुहार लगा चूके हैं लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली. उनकी यह गिरफ्तारी शराब घोटाले के अंतर्गत की गयी है. दिल्ली जल बोर्ड में वित्तीय अनियमितताओं के लिए भी उन्हें सम्मन जारी किया गया है. नैतिकता, सुचिता, ईमानदारी और देश के लिए समर्पित राजनीति करने के नाम पर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेता मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन संजय सिंह आदि अभी भी जेल में हैं और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक से जमानत नहीं मिल पाई है.

इसके पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा. पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले सामने आए जिसमे कई मंत्री और विधायक जेल की हवा खा रहे हैं. तमिलनाडु में सरकार के मंत्री सेंथिल बालाजी जेल में हैं, और कई जेल जाने की राह पर है. कई राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री जांच एजेंसियों के राडार पर हैं और उनमें से भी कई शीघ्र ही जेल जा सकते हैं. कांग्रेस की अगुवाई वाली एंडी एलायंस के घटक दल केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं लेकिन अभी तक जो नेता एजेंसी द्वारा जेल भेजे गए उनकी जमानत किसी भी अदालत से नहीं हो पाई है जो यह रेखांकित करता है कि उनके विरुद्ध कितने मजबूत और पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है. इसके विपरीत कोई भी विपक्षी दल मोदी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल से संबंधित भ्रष्टाचार का कोई भी मुद्दा सामने नहीं ला सकी है. भारत के वर्तमान परिवेश में ये मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जायेगी. भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना और सही दिशा देना भी छोटा कार्य नहीं है और इसके साथ ही देश की बड़ी जनसंख्या के लिए मुफ्त राशन, पक्के मकान, शौचालय, नल का जल, मुफ्त गैस सिलिंडर और किसान सम्मान निधि देना बेहद उल्लेखनीय कार्य है. इतने बड़े लाभार्थी वर्ग, विकासोन्मुख योजनाओं, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद पर प्रभावी कार्रवाई के कारण मोदी सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी कोई लहर नहीं है. वैश्विक परिवेश में भारत का मान सम्मान बढ़ा है और मोदी की छवि बेहद सफल और लोकप्रिय वैश्विक राजनेता के रूप में जानी जाती है. ऐसे में तीसरी बार भाजपा सरकार बनने में विपक्ष सहित किसी को कोई संदेह नहीं है लेकिन आरोप और प्रत्यारोप मजबूरी की औपचारिकता है.  

भ्रष्टाचार भारत की बहुत बड़ी बीमारी है, और तमाम प्रयासों के बाद भी इस पर रोक लगना तो दूर, कम होने की भी कोई सूरत नजर नहीं आ रही. इसका सबसे बड़ा कारण है राजनीतिक भ्रष्टाचार, जो देश को आजादी मिलने के पहले ही शुरू हो गया था. आजादी के बाद तो राजनीतिक दलों ने सत्ता हासिल करने के लिए वित्तीय ही नहीं, हर तरह के भ्रष्टाचार किये और आज राष्ट्र के समक्ष जो गम्भीर चुनौतियां हैं, उनका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है. भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए सभी सरकारों और राजनीतिक दलों ने समय समय पर बड़े बड़े वायदे किए, लेकिन धरातल पर विशेष कुछ नहीं हुआ. यदि मोदी सरकार के पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल को छोड़ दें जिसमें सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई भी गंभीर आरोप नहीं है, स्वतंत्रता के बाद केंद्र में कोई भी ऐसी सरकार नहीं रहीं जिसपर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हो.

कांग्रेस की कोई भी सरकार इससे अछूती नहीं रही. देश के प्रथम आम चुनाव से पहले ही 1951 में जवाहर लाल नेहरू की पहली सरकार के दौरान ही मूंदड़ा स्कैंडल सामने आया था, उनके दामाद फिरोज खान गाँधी ने उजागर किया था लेकिन अपने वित्तमंत्री टीटी कृष्णामचारी की बलि देकर नेहरू ने इसे निपटा दिया. सरकारी उपक्रम बनाने में भी चुनावी फंड जुटाने को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में रक्षा सौदों में दलाली के गंभीर आरोप लगे थे. उनके समय हुआ कुख्यात नागरवाला कांड आज भी इतिहास के चर्चित घोटालों में गिना जाता है. 1973 में मारुति घोटाला सुर्खियों में आया था, जिसमें सोनिया गाँधी को बिना किसी तकनीकी योग्यता के कंपनी का प्रबंध निदेशक नियुक्त कर दिया गया था. मिस्टर क्लीन के नाम से विख्यात राजीव गाँधी पर बोफोर्स घोटाले में सोनिया गाँधी के रिश्तेदार क्वात्रोची के माध्यम से रिश्वत लेने का आरोप लगा. एचडीडब्लू पनडुब्बी घोटाले ने उनकी सरकार को बेनकाब कर दिया था. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही उनकी सरकार वापसी नहीं कर सकी. कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार तो बहुमत जुटाने में “वोट के बदले नोट” में फंसी रही. हर्षद मेहता कांड भी इसी बीच हुआ. 2004 से 2013 तक कांग्रेस की संप्रग सरकारों के दोनों कार्यकाल भ्रष्टाचार के पर्याय बन गए थे. टूजी, कोलगेट, सत्यम, हसनअली टैक्स घोटाला, देवास एंट्रिक्स जैसे अनेकों घोटाले रोज़ रोज सामने आते थे. नेशनल हेराल्ड, वाड्रा डीएलएफ़, अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर, कॉमनवेल्थ खेल, जैसे घोटाले लोगों की स्मृति में आज भी ताजा हैं. नेशनल हेराल्ड घोटाले में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी दोनों ही जमानत पर हैं. जनता दल की गठबंधन सरकार में सुखराम का टेलीकॉम घोटाला और केतन पारिख का वित्तीय घोटाला सुर्खियों में रहे. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में ताबूत घोटाले का आरोप तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस पर लगा था.

ऐसा नहीं है कि घोटाले केवल केंद्र की सरकारों में ही हुए, राज्य सरकारें भी पीछे नहीं रहीं. क्षेत्रीय दलों की सरकारे बनने के बाद तो जैसे घोटालों की बाढ़ आ गई. हर क्षेत्रीय दल ने अपना वर्चस्व बढ़ाने, सत्ता बनाए रखने के लिए जमकर भ्रष्टाचार किया और वोटों के लालच में मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाकर न केवल हिंदू एकता और सनातन धर्म के विरुद्ध काम किया बल्कि कदम कदम पर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ समझौता भी किया, जिसके दुष्परिणाम पूरा देश भुगत रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडीअलायन्स के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार के कई मामलों में सजा हो चुकी है और कई मुकदमे अभी भी चल रहे हैं जिनमे नौकरी के बदले जमीन का मामला प्रमुख है और उसमें भी बड़ी सजा की संभावना है. अब तक पांच मामलों में उन्हें 32.5 वर्ष की सजा हो चुकी है. इस समय वह चिकित्सा कराने के लिए पैरोल पर जेल के बाहर है. जेल की जितनी सजा उन्हें और काटनी है शायद वे उनके वर्तमान जीवनकाल में संभव भी ना हो सके लेकिन नैतिकता को ताक पर रखकर वह पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी को गालियां दे रहे हैं, गठबंधन की बैठकों में हिस्सा ले रहे हैं और सार्वजनिक रैलियो में अन्य नेताओं के साथ मंच भी साझा कर रहे हैं. दूसरे नेताओं की भी इससे कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि उनमे से अधिकांश किसी न किसी घपले घोटाले में फंसा है. एक सजायाफ्ता कैदी को ये सुविधा और उसका दु:साहस कानून का दुरुपयोग नहीं, कानून की धज्जियां  उड़ाना है. शायद यह कानून की ही कमजोरी है.

भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ही देश की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है और यह व्यवस्था संविधान में बनाई गयी है. ब्रिटेन की चुनावी प्रणाली की नकल करके बनायी गयी बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था भारत के लिए कदापि उपयुक्त नहीं है. इस व्यवस्था के कारण ही विभिन्न दलों के बीच अनैतिक प्रतिस्पर्धा होती है. भारत में राजनीति एक उद्योग बन गया है. क्षेत्रीय दल भी राजनीति के माध्यम से पुराने समय के राजे रजवाड़े  बन गए हैं, जो भारत को वित्तीय और राजनीतिक रूप से खोखला करता जा रहा है. इन दलों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए धर्म और जाति का जमकर उपयोग किया जाता है, इससे हिन्दु समाज आंतरिक संरचनात्मक व्यवस्था में पहले से भी अधिक विखंडित हो गया है. सामाजिक समरसता की दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है. धार्मिक ध्रुवीकरण करने फायदा उठाने के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी सीमाएं टूट और अब तो हिंदू समाज को तोड़ने की भी सारी जुगत लगाई जा रही है. अगड़े, पिछड़े, दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों की एकजुटता के नाम पर सांप्रदायिक विषमता उत्पन्न की जा रही है.

अभी तक क्षेत्रीय दल ही जातिगत भावनाओं को भड़काते थे लेकिन अब कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल  जो ठेके पर देश को आजादी दिलाने का दावा करता है, मुस्लिम हितों की वकालत करता है,  भी जातिगत जनगणना की पुरज़ोर वकालत कर रहा है और इसे हर मर्ज की दवा साबित करने की कोशिश कर रहा है और जातिगत संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है. यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा  कि सबसे पुरानी पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोड़ा न्याय यात्रा में केवल जातिगत जनगणना पर ही प्रमुखता से बात की और एक तरह से लोगों को वर्ग संघर्ष के लिए उकसाया. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम जैसे दल जातिगत विभेद उत्पन्न करने के साथ साथ मुस्लिम तुष्टीकरण की भी सारी सीमाएं लांघ चुके हैं, लेकिन कांग्रेस से इतने गैर जिम्मेदारी के आचरण की अपेक्षा नहीं थी.  अब इसके बाद  कांग्रेस ने राष्ट्र विरोधी के हर कार्य के साथ अपने आपको संबद्ध कर लिया हैं और राष्ट्रीय दायित्व का उसका स्तर क्षेत्रीय दलों से भी नीचे गिर चुका है.

सभी विपक्षी दल जांच एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई पर शोर शराबा कर रहे हैं और इसे राजनीति प्रेरित कदम बता रहे हैं. मोदी सरकार द्वारा बिना किसी विपरीत प्रतिक्रिया के चुपचाप निडरता से काम करते रहना, उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई है जिससे जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है. विपक्षी दलों द्वारा की जा रही अनर्गल बयानबाजी से उनकी स्थिति और अधिक कमजोर होती जा रही है. ऐसे में वे स्वयं नरेंद्र मोदी की तीसरी बार ताजपोशी का रास्ता साफ करते जा रहे हैं. देश की जनता का ये उत्तरदायित्व है की वही उसी दल का समर्थन करें जो राष्ट्र की गंभीर चुनौतियों को समझता हो और उनका सफलतापूर्वक सामना करते हुए अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सकता हो. देश में दो दलीय व्यवस्था की अत्यंत आवश्यकता है, इस पर सरका को गंभीरता से विचार करना चाहिए.

                   ~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~

शुक्रवार, 15 मार्च 2024

आखिर आ ही गया सीएए

 


आखिर आ ही गया सीएए

दिसंबर 2019 में पास किए गये संशोधित नागरिकता कानून की अधिसूचना के बाद 11 मार्च 2024 से यह कानून प्रभावी हो गया है. 4 साल तक ठंडे बस्ते में डालने के बाद भाजपा सरकार ने हिम्मत दिखाई और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह कानून लागू कर दिया. 2019 में जब संसद में इस विधेयक को पास किया गया तो काफ़ी हो हल्ला हुआ था और शाहीन बाग में तो एक साल से भी अधिक लंबा आंदोलन चलाया गया. लगभग सभी विपक्षी दलों ने इस कानून का विरोध किया. वैसे तो इसमें विरोध करने जैसा  कुछ भी नहीं है लेकिन अगर विरोध का केंद्र बिंदु मुसलमान हों तो मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले सभी राजनीतिक दल इसका विरोध करेंगे ही. आज पूरे विश्व को यह मालूम है कि भारत के राजनीतिक दल वोटो के लालच में मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं और राष्ट्रीय हितों की किसी भी हद तक अनदेखी कर सकते हैं. उनकी सभी नाजायज मांगों को पूरा करने के कारण बहुसंख्यक हिंदू न केवल अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए हैं बल्कि  तिल तिल कर भारत इस्लामिक राष्ट्र होने की ओर बढ़ रहा है. सत्ता के स्वार्थ में कोई राजनैतिक दल स्वयं इस्लामिक राष्ट्र बनाने में शामिल हो जाय तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

इस बार भी अधिसूचना जारी होने के बाद इसका विरोध शुरू हो गया. मुस्लिम संगठनों को तो करना ही था लेकिन चुनावी वैतरणी पार करने के उद्देश्य से सभी राजनेताओं ने इसका विरोध किया. तुष्टिकरण में सबसे आगे रहने की होड़ में ममता बनर्जीं ने अपनी जान देकर भी सीएए लागू न करने की बात कही. यह छिपी बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के बहुत बड़ी संख्या है, जो तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक है. विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में संगठित गिरोह योजनाबद्ध तरीके से उनके लिए आधार कार्ड राशन कार्ड और वोटर आइडी कार्ड का इंतजाम करते हैं और विभिन्न जगहों पर बसाते हैं. उन्हें सरकारी सुविधाओं का फायदा दिया जाता है. आवश्यकता पड़ने पर इनका प्राइवेट आर्मी की तरह इस्तेमाल  किया जाता है. हाल के कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल में चुनाव के समय होने वाली हिंसा में इन अवैध घुसपैठियों का इस्तेमाल के प्रमाण हैं. इसलिए ये ममता बनर्जीं की बहुत बड़ी राजनैतिक पूंजी है.

तुष्टीकरण के इस खेल में अरविंद केजरीवाल कहाँ पीछे रहने वाले थे तो उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिमों को नागरिकता देकर अपना वोट बैंक बनाना चाहती है. इन देशों से आने वाले गैर मुस्लिम भारत की कानून और व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी समस्या बन जाएंगे जो लूटपाट हत्या और बलात्कार जैसे अपराध करेंगे. देश के युवाओं के रोजगार खा जाएंगे और महंगाई बढ़ाने का काम करेंगे. दिल्ली के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाले लोगों को मालूम होगा कि केजरीवाल ने किस तरह से दिल्ली में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए बेहतरीन इंतजाम किए हैं और अपना वोट बैंक बनाया है. पिछली बार सीएए के विरोध में शाहीन बाग में हुए धरना प्रदर्शन के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे की रिपोर्ट से पता चला कि दंगों में इन अवैध घुसपैठियों का जमकर इस्तेमाल किया गया था.

तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने कहा कि वह राज्य में सीएए लागू नहीं करेंगे यद्यपि इसे रोकना राज्य सरकार के हाथ में नहीं है क्योंकि यह केंद्रीय कानून है और इसे केंद्रीय अधिकारी ही लागू करेंगे. केरल सरकार ने एक कदम और आगे जाकर सीएए के विरोध में विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया और  सर्वोच्च न्यायालय में इस पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की है. सर्वोच्च न्यायालय याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार भी हो गया है. कांग्रेस भी सीएए लागू करने के खिलाफ़ है और उसका मानना है कि यह असंवैधानिक है क्योंकि यह धर्म के आधार पर नागरिको में भेद करता है. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने घोषणा कर दी है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह इस कानून को खत्म कर देंगे. उत्तर प्रदेश में  समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल भी इसके स्वाभाविक विरोधी हैं. असदुद्दीन ओवैसी जिन्ना की भूमिका में हैं, इसलिए कोई भी राष्ट्रीय मुद्दा हो और वह हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता न देखें, हो नहीं सकता. वे सीएए के साथ एनपीआर और एनआरसी को भी जोड़ कर मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं. सभी विपक्षी दलों ने उनका काम आसान कर दिया है.

 अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक वामपंथ गठबंधन के संगठन पूरी मुस्तैदी के साथ भारत की  सीएए का विरोध कर रहे हैं, इस कार्य में  भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी उनका साथ दे रही है. बीबीसी, वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, अल जज़ीरा आदि भ्रम फैलाने का कार्य कर रहे हैं. भारतीय राजनीतिक दलों के विरोध को देखते हुए अमेरिकी विदेश विभाग ने भी कहा कि वह चिंतित है और इस पर नजर रखे हुए हैं. और तो और सरकारी संरक्षण में हिंदुओं का धार्मिक उत्पीड़न करने वाले घोर सांप्रदायिक और भारत विरोधी इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान ने भी भारत के इस कानून को भेद-भावपूर्ण  बताते हुए कहा कि यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास है. भारत विरोध के लिए कुख्यात एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि नागरिकता का यह कानून भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानको के विपरीत है. 

विरोध करने वालों का तर्क है कि इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया इसलिए यह असंवैधानिक है क्योंकि संविधान (अनुच्छेद 14) भारतीय नागरिको के साथ भेदभाव करने के विरुद्ध है. ये विद्वान भूल जाते हैं कि यह कानून भारतीय नागरिको के लिए नहीं, विदेशी नागरिको यानी पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों के लिए है, जो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हैं. ये तीनों ही देश मुस्लिम राष्ट्र है तो वहाँ पर मुस्लिमों का धार्मिक उत्पीड़न कैसे हो सकता है और अगर हो रहा है तो संघर्ष करे. एक और तर्क है कि भारत सेक्युलर सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है तो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में यह भेदभाव क्यों. “सेक्युलर सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक रिपब्लिक” शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं है। इसे 1975 में इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम नेताओं के दबाव में किया था, जो भारत की बहुसंख्यक जनता के साथ धोखाधड़ी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा सहित किसी भी राजनैतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया। अगर धर्मनिरपेक्षता की इतनी चिंता है तो पूजा स्थल 1991 कानून, वक्फ बोर्ड कानून, अल्पसंख्यक आयोग, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  क्यों हैं. अल्पसंख्यकों को धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार लेकिन हिन्दुओं को नहीं, हिन्दुओं के मंदिरों पर सरकारी कब्जा, किन्तु अल्पसंख्यक संस्थान स्वतन्त्र. भारत में अगर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता तो आजादी के समय मुसलमानों की 3.5 करोड़ जनसंख्या आज 25 करोड़ से अधिक कैसे हो जाती. 

भ्रम फैलाने की इस प्रक्रिया में लोग यह भूल जा रहे हैं कि वर्तमान संशोधित नागरिकता कानून इन तीन पड़ोसी देशों के गैर मुस्लिमों के लिए विशेष कानून है जबकि नागरिकता प्रदान करने की सामान्य प्रक्रिया अभी भी है जिसके अंतर्गत पूरे विश्व के किसी भी देश के नागरिक को नागरिकता का आवेदन करने का अधिकार है और उसके आधार पर ही पाकिस्तान सहित अन्य देशों के मुसलमानों को भी नागरिकता प्रदान की गई है।

2019 में जब संशोधित नागरिकता कानून पास हुआ था उस समय इसके विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा करने का षड्यंत्र रचा गया था आंदोलन के स्वरूप को देखकर ऐसा लगता था कि यह आंदोलन केवल  भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया जा रहा है लेकिन इसे सभी विपक्षी  दलों का समर्थन प्राप्त था और  भारत विरोधी शक्तियां, जिनमे इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ से सम्बद्ध सभी संगठन शामिल हैं, ने पूरे आंदोलन का वित्तपोषण किया था. यह छिपी बात नहीं है कि भारत के ज्यादातर मुस्लिम संगठनों और उनके अंतरराष्ट्रीय प्रायोजकों का उद्देश्य भारत को दारुल इस्लाम यानी इस्लामिक राष्ट्र बनाना है. इस कानून का विरोध करने वालों अधिकांश मुसलमानों और मुस्लिम संगठनों का संबंध गज़वा ए हिंद से है. ये सभी इस कानून में मुसलमानों को भी शामिल करवाकर अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को भारत का नागरिक बनाकर भारत का जनसंख्या परिवर्तन करना चाहते हैं. कोई भी राजनैतिक दल इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है कि अगर इस कानून में मुसलमानों को भी शामिल कर लिया जाये तो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनने में ज़रा भी देर नहीं लगेंगी.

 1971 में बांग्लादेश बनने के समय लगभग 5 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत में आ गए थे. भारत की सेनाओं ने अपनी जान पर खेलकर बांग्लादेश का निर्माण करवाया था. यह सही है कि युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह से पराजित हुआ था और उसके नब्बे हजार  सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. भारत इन सैनिकों का इस्तेमाल पाक अधिकृत कश्मीर प्राप्त करने के लिए कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह मान लेना उचित नहीं होगा कि इंदिरा गाँधी को इतनी समझ नहीं थी. इंदिरा गाँधी ने आम चुनाव में भारतीय जीत को जमकर भुनाया और अपने घोषणा पत्र में यह भी कहा कि वह शरणार्थियों की की सम्मानजनक वापसी होगी किन्तु कोई बांग्लादेशी शरणार्थी वापस गया, इसका कोई प्रमाणिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है. इस बात की संभावना भी नहीं लगती कि कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया या शरणार्थी भारत आकर अपने आप बांग्लादेश वापस चला जाएगा. इस प्रश्न का आज भी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है कि बांग्लादेश युद्ध से भारत को क्या हासिल हुआ. दो जगहों पर स्थित बंटा हुआ पाकिस्तान, भारत के लिए ज्यादा अच्छा था या पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में दो स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र भारत के लिए अच्छे हैं.

बांग्लादेश बनने के बाद भारत में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की बाढ़ आ गई, जो आज भी अनवरत जारी है. बेरोजगारी महंगाई पर छाती पीटने वाले राजनैतिक दल इस बात का कोई जवाब नहीं देते कि इन घुसपैठियों ने भारत महंगाई और बेरोजगारी में कितना बड़ा योगदान किया है.  कुछ समय पहले म्यांमार से भागे रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के रूप मेंबांग्लादेश पहुंचे जिनके नाम पर बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से जमकर वित्तीय सहायता और प्रशंसा प्राप्त की. लेकिन सारे के सारे रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह भारत आ गए. हाल के दिनों में बांग्लादेश सीमा पार कर भारत आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या लगभग 5 करोड़ है. अगर 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद आए घुसपैठियों की पूरी संख्या देखी जाए तो यह लगभग 10 करोड़  के आसपास  है. कई देशों की कुल जनसंख्या भी इतनी नहीं है जितनी संख्या मुस्लिम घुसपैठियों की भारत में है, लेकिन विरोध हो रहा है नए कानून से  कुछ सौ या कुछ लाख गैर मुस्लिम शरणार्थियों का. आज कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये न हो. पश्चिम बंगाल से केरल तक, तमिलनाडु से लेकर जम्मू तक और उत्तराखंड की सुदूर दुर्गम स्थानों पर भी इन घुसपैठियों की पैठ हो चुकी है. गंभीरता का अंदाजा आप केवल इस बात से लगा सकते हैं कि रेलवे ट्रैक के किनारे झुग्गी झोपड़ी लगाकर रहने वाले इन अवैध घुसपैठियों की इतनी बड़ी संख्या है कि आधे घंटे के अंदर देश का पूरा रेलवे नेटवर्क ठप कर सकते हैं. संशोधित नागरिकता के कानून से भारत में रह रहे मुसलमान किसी भी तरीके से प्रभावित नहीं है। उनका विरोध केवल शक्ति प्रदर्शन करके तुष्टिकरण में लगे राजनीतिक दलों को उनकी औकात बताना हैं. गज़वा ए हिंद की योजना में कोई विघ्न बाधा न पहुंचे, इसका प्रयास भी लगता है।

ये सही है कि मोदी सरकार ने इस कानून की अधिसूचना जारी करने में आवश्यकता से अधिक विलंब किया। हो सकता है उनका इरादा इसे हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डालने का रहा और लोकसभा चुनाव में राजनैतिक लाभ लेने के उद्देश्य से लागू किया गया हो। जो भी हो देर आए दुरुस्त आए। सभी राष्ट्रवादियों को इसका स्वागत करना चाहिए। अगर राष्ट्रहित में कोई काम राजनैतिक लाभ के लिए भी किया जा रहा है तो उन्हें राजनैतिक लाभ देने में कोई हर्ज नहीं है। ये भी सही है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में मुस्लिम समुदाय को रिझाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं और इस कार्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उनका साथ देता रहा है। हकीकत यह है कि भाजपा और आरएसएस कुछ भी कर ले मुस्लिम समुदाय ना तो भाजपा को पसंद करता था, ना ही पसंद करता है और ना करेगा। इसलिए भाजपा का  चुनावी लाभ के लिए तुष्टीकरण या संतृप्तिकरण करना बेकार है। बिना हिंदुओं समर्थन के भाजपा की सरकार बनना संभव नहीं है, इस बात को भाजपा और आरएसएस जितनी जल्दी समझ जाएं, उनके हित में है   और राष्ट्र के हित में भी.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...