शनिवार, 11 सितंबर 2010

आतंकी प्यास... एक कवि की....

 प्यास से व्याकुल एक व्यक्ति ने,
एक घर का दरवाजा खटखटाया,
एक 
कविनुमा चेहरा  बाहर आया,
जिसे देख कर वह व्यक्ति बोला ,
"प्यासा हूँ" ....अगर .....पानी...
 मिल जाये
"हाँ हाँ क्यों नहीं " कह कर कवि ने
उसे ड्राइंग रूम में बिठाया,
और खुद भी बैठ कर बोला,
कल भी मैं प्यासा था,
 आज भी मै प्यासा हूँ,
सब कुछ आस पास है,
 फिर भी मन उदास है,
न जाने कैसी प्यास है ?
प्यासे व्यक्ति को बात समझ नहीं आयी,
कवि ने बात थोडा आगे बढ़ायी,
वह था ग्यारह सितम्बर,
अमेरिका पर आतंकी कहर,
उसी के अपह्रत विमानों को
वर्ड ट्रेड  सेंटर से टकरा दिया,
एक सौ दस मंजिली बिल्डिंग को,
 धूल में मिला दिया,
हजारो सिसकियाँ मलबे में दफ़न हो गयी,
समूचे विश्व की आत्मा दहल गयी,
कौन थे हमलावर ? क्या उद्देश्य था ?
न इसका आभास है,
न जाने कैसी प्यास है ?
प्यासा व्यक्ति घबराया,
उसे लगा,
 कवि उसकी बात समझ नहीं पाया,
उसने सोचा विज्ञापन की भाषा में बताएं,
शायद समझ .........जाये   ...,
पानी की जगह पेप्सी मिल जाये,
ये सोच कर बोला,
"ये दिल मांगे मोर"
कवि ने कहा "श्योर"
और बोला
वे पूरी दुनिया की करते थे निगरानी,
पर अपने घर की बात ही न जानी,
चार चार विमान एक साथ अपह्रत हो गए,
दुनिया की सुरिक्षतम जगह,
पेंटागन पर हमले हो गए,
अब आतंकी साये में ,
आतंकियों की तलाश है,
न जाने कैसी प्यास है ?
प्यासा व्यक्ति चिल्लाया -
"ओह नो"
कवि बोला " ओह यस"
इतिहास गवाह है,
जो भस्मासुर बनाता है,
यह उसी के पीछे पड़ जाता है,
आतंकवाद का दर्द भी,
 तभी समझ में आता है,
जब कोई स्वयं,
 इसकी चपेट में आता है,
आतंकवाद से लड़ने के लिए,
 वे उसी के साथ खड़े है,
 जिसके तार स्वयं आतंकवादियों से जुड़े हैं,
आतंकवाद से लड़ने का
 यह अधूरा प्रयास है,
न जाने कैसी प्यास है ?
प्यासा व्यक्ति निढाल हो ,
सोफे पर लुढ़क गया,
यह देख
कवि पत्नी का दिल दहल गया,
वह बोली
न आप अमेरिका हैं , न पाकिस्तान,
न रूस है , न अफगानिस्तान,
आप भारत हैं ,
और भारत को
दूसरो की आश छोडनी होगी,
आतंकवाद के खिलाफ,
 अपनी लडाई स्वयं  लडनी होगी,
इस बिचारे को  तो नाहक सता रहे हो ,
पानी की जगह कविता पिला रहे हो,
यह मूर्क्षित व्यक्ति, कोई और नहीं,
 स्वयं एक बड़ा आतंकवादी है,
न इसका तुम्हे ..अहसास है ?
ओफ़ ..न जाने कैसी प्यास है ??
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 -शिव प्रकाश mishra
-SHIV PRAKASH MISHRA
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