शनिवार, 11 सितंबर 2010

कुछ कह रहे हैं

कुछ कह रहे हैं,
सूखे की आग में
जलती फसलो को देख,
जी को जला कर
 जी रहे है.
डीजल केरोसीन डीलरो की तरह
इन्द्र का स्टॉक में नहीं है की तख्ती देख
 रो रहे हैं.
भूख से बिलखते सिसकते आदिवासी,
 बेबस मजबूरी में
जड़े ही खा रहें है,
करके हड़ताल  नज़रबंदी में,
 नशा बंदी में ,
भंग छान ,
मस्ती में लम्बी तान,
 इन्द्र अब भी सो रहे हैं !!
____________________
     - शिव प्रकाश मिश्र
____________________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर लगाई रोक

हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ निर्णय चर्चा में रहे जिनमें न्यायिक सर्वोच्चता के साथ साथ न्यायिक अतिसक्रियता भी परलक्...