सर्व बाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य सुतान्विता .
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशया ..
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- शिव प्रकाश मिश्र
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रविवार, 17 अक्तूबर 2010
क्षणिकाएं
(१)
प्रेम में तुम्हारे है
यही मुझसे से अन्तर,
तुम देखते हो बाहर
मै देखता हूँ अन्दर ..
(२)
एक बस कंडेक्टर ने
टिकेट बनाने में किया
नया तरीका अख्तियार,
फर्स्ट ऐड बॉक्स पर
लिख दिया
" बिना टिकेट यात्री होशियार".
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- शिव प्रकाश मिश्र
- S.P.MISHRA
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प्रेम में तुम्हारे है
यही मुझसे से अन्तर,
तुम देखते हो बाहर
मै देखता हूँ अन्दर ..
(२)
एक बस कंडेक्टर ने
टिकेट बनाने में किया
नया तरीका अख्तियार,
फर्स्ट ऐड बॉक्स पर
लिख दिया
" बिना टिकेट यात्री होशियार".
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- शिव प्रकाश मिश्र
- S.P.MISHRA
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गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010
सपना....The Dream
रात्रि सपने में जो देखा था,
वही रंग फिर उभर आया .
खामोशियों में गुनगुनाहट भर गयी,
दिल में ही दर्पण सा नजर आया.
पवन के मात्र लघु झोंके से ,
सुगंधों का बड़ा तूफ़ान आया.
सौंदर्य मणि की रश्मिया ऐसी कि,
चित्रकारों की तूलिका पर तरस आया,
मुग्ध हो ज्यों भानु ने देखा ,
धरा को नाचते पाया......
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- शिव प्रकाश मिश्र
- S.P.MISHRA
वही रंग फिर उभर आया .
खामोशियों में गुनगुनाहट भर गयी,
दिल में ही दर्पण सा नजर आया.
पवन के मात्र लघु झोंके से ,
सुगंधों का बड़ा तूफ़ान आया.
सौंदर्य मणि की रश्मिया ऐसी कि,
चित्रकारों की तूलिका पर तरस आया,
मुग्ध हो ज्यों भानु ने देखा ,
धरा को नाचते पाया......
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- शिव प्रकाश मिश्र
- S.P.MISHRA
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
ऋतुराज बसंत ( मधुमास )
अरे तुम फिर आ गयी ऋतुराज,
बहाती सुंदर सुरभि सुवास,
बिखेरा कैसा ये उन्माद,
लगाती हो मुझसे कुछ आश,
ओट में सुन्दरता के हो,
बुना है कैसा दुर्गम जाल,
फंस गए सब ही अपने आप,
टेक तेरे घुटुनो पर भाल,
रुचेगी कैसे सुन्दरता,
रिस रहे जिसके घाव हरे
हो रहा हो काँटों से प्यार ,
उसे क्या गंध सुगंध करे,
चाहिए नहीं मुझे सुख चारू,
अगर हो निर्जन कोई ठौर,
रहूँगा भी कैसे मैं वहां
जहाँ हो मानवता ही गौड़,
बुझी हो आंसू से जो प्यास
न आएगा उसको मधु रास,
लगा दो अपना सारा जोर,
न होगा मुझको अब विश्वाश.
########### शिव प्रकाश मिश्र ###########
(मूल कृति दिसम्बर १९७९ - सर्व प्रथम दैनिक वीर हनुमान औरैय्या में प्रकाशित)
बहाती सुंदर सुरभि सुवास,
बिखेरा कैसा ये उन्माद,
लगाती हो मुझसे कुछ आश,
ओट में सुन्दरता के हो,
बुना है कैसा दुर्गम जाल,
फंस गए सब ही अपने आप,
टेक तेरे घुटुनो पर भाल,
रुचेगी कैसे सुन्दरता,
रिस रहे जिसके घाव हरे
हो रहा हो काँटों से प्यार ,
उसे क्या गंध सुगंध करे,
चाहिए नहीं मुझे सुख चारू,
अगर हो निर्जन कोई ठौर,
रहूँगा भी कैसे मैं वहां
जहाँ हो मानवता ही गौड़,
बुझी हो आंसू से जो प्यास
न आएगा उसको मधु रास,
लगा दो अपना सारा जोर,
न होगा मुझको अब विश्वाश.
########### शिव प्रकाश मिश्र ###########
(मूल कृति दिसम्बर १९७९ - सर्व प्रथम दैनिक वीर हनुमान औरैय्या में प्रकाशित)
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